Friday, July 19, 2013

043-रश्क कहता है

रश्क कहता है, कि उसका ग़ैर से इख़लास, हैफ़
`अक़्ल कहती है कि वह बेमेहर किस का आश्ना

ज़र्र: ज़र्र: साग़र-ए-मैख़ान:-ए-नैरंग है
गर्दिश-ए-मजनूँ ब चश्मकहा-ए-लैला आश्ना

शौक़ है सामाँ-तराज़-ए-नाज़िश-ए-अरबाब-ए-`अज्ज़
ज़र्र: सहरा-दस्त-गाह-ओ-क़तर: दरिया-आश्ना

मैं, और एक आफ़त का टुकड़ा, वह दिल-ए-वहशी कि है
`आफ़ियत का दुश्मन और आवारगी का आश्ना

शिकव:-संज-ए-रश्क-ए-हमदीगर न रहना चाहिये
मेरा ज़ानू मूनिस और आईन: तेरा आश्ना

कोहकन, नक़्क़ाश-ए-यक तिम्साल-ए-शीरीं था, असद
संग से सर मार कर होवे न पैदा आश्ना

ख़ुद-परस्ती से रहे बा-हम-दिगर ना-आश्ना
बेकसी मेरी शरीक आईन: तेरा आश्ना

आतिश-ए-मू-ए-दिमाग़-ए-शौक़ है तेरा तपाक
वर्न: हम किस के हैं अय दाग़-ए-तमन्ना आश्ना

जौहर-ए-आईन: जुज़ रमज़-ए-सर-ए-मिश़गाँ नहीं
आश्ना की हम-दिगर समझे है ईमा आश्ना

रब्त-ए-यक-शीराज़ह-ए-वहशत हैं अज्ज़ा-ए-बहार
सब्ज़: बेगानह सबा आवारह गुल ना-आश्ना

बे-दिमाग़ी शिकव:-संज-ए-रश्क-ए-हम-दीगर नहीं
यार तेरा जाम-ए-मै ख़मयाज़ह मेरा आश्ना

-मिर्ज़ा ग़ालिब

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