क़यामत है, कि सुन लैला का दश्त-ए-क़ैस में आना
ता`अज्जुब से वह बोला, यूं भी होता है ज़माने में
दिल-ए-नाज़ुक प उस के रहम आता है मुझे, ग़ालिब
न कर सरगर्म उस काफ़िर को उल्फ़त आज़माने में
-मिर्ज़ा ग़ालिब
ता`अज्जुब से वह बोला, यूं भी होता है ज़माने में
दिल-ए-नाज़ुक प उस के रहम आता है मुझे, ग़ालिब
न कर सरगर्म उस काफ़िर को उल्फ़त आज़माने में
-मिर्ज़ा ग़ालिब
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