Sunday, September 8, 2013

1111-शेर के पर्दे में

शे'र के पर्दे में मैं ने, ग़म सुनाया है बहुत
मर्सिये ने दिल को मेरे भी, रुलाया है बहुत

बेसबब आता नहीं, अब दम-ब-दम 'आशिक़ को गश
दर्द खींचा है निहायत, रंज उठाया है बहुत

वादी-ओ-कोहसर में रोता हूँ, धाढें मार-मार
दिलबरान-ए-शहर ने, मुझ को सताया है बहुत

वा नहीं होता किसू से, दिल गिरिफ़्ता इश्क़ का
ज़ाहिरन ग़मगीं उसे रहना, ख़ुश आया है बहुत

मीर, गुमगश्त: का मिलना, इत्तिफ़ाक़ी अम्र है
जब कभू पाया है, ख़्वाहिशमंद पाया है बहुत

-मीर तक़ी मीर

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2 comments:

Anonymous said...

for the 4th one
log jin hadso se darte hai
hame un hadso ne paala hai...


sp

आशीष नैथाऩी said...

वाह बहुत खूब !!

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