Thursday, July 18, 2013

227-हुजूम-ए-नाल:

हुजूम-ए-नाल:, हैरत `आजिज़-ए-`अर्ज़-ए-यक-अफ़्ग़ां है
ख़मोशी, रेश:-ए-सद नैसिताँ से ख़स ब दन्दां है

तक़ल्लुफ़ बर तरफ़, है जाँसिताँ-तर लुत्फ़-ए-बदख़ूयाँ
निगाह-ए-बेहिजाब-ए-नाज़, तेग़-ए-तेज़-ए-`उरयाँ है

हुई यह कसरत-ए-ग़म से तलफ़, कैफ़ियत-ए-शादी
कि सुबह-ए-`ईद मुझ को बदतर अज़ चाक-ए-गरीबाँ है

दिल-ओ-दीं नक़द ला, साक़ी से गर सौदा किया चाहे
कि उस बाज़ार में, साग़र मता`-ए-दस्त-गरदाँ है

ग़म आग़ोश-ए-बला में परवरिश देता है, `आशिक़ को
चराग़-ए-रौशन अपना, क़ुलज़ुम-ए-सरसर का मरजाँ है

तक़ल्लुफ़-साज़-ए-रुस्वाई है ग़ाफ़िल शर्म-ए-र`नाई
दिल-ए-ख़ूँ-गश्त: दर दस्त-ए-हिना-आलूद: `उरयाँ है

असद जम`ईयत-ए-दिल दर-किनार-ए-बेख़ुदी ख़ुश-तर
दो-`आलम आगही सामान-ए-यक ख़्वाब-ए-परीशाँ है

-मिर्ज़ा ग़ालिब

No comments:

Post a Comment