Saturday, July 20, 2013

001-नक़्श फ़रियादी है

नक़्श फ़रियादी है, किसकी शोख़ी--तहरीर का
काग़ज़ी है पैरहन, हर पैकर--तस्वीर का

काव-काव- सख़्तजानीहा--तन्हाई, पूछ
सुबह करना शाम का, लाना है जू--शीर का

जज़्ब:--बेइख़्तियार--शौक़ देखा चाहिये
सीन:--शमशीर से बाहर है, दम शमशीर का

आगही, दाम--शुनीदन, जिस क़दर चाहे बिछाए
मुद्दआ़ 'अ़न्क़ा है, अपने 'आ़लम--तक़रीर का

बसकि हूँ, ग़ालिब, असीरी में भी आतिश-ज़ेर--पा
मू--आतिश-दीद़: है हल्क़: मिरी ज़ंजीर का
-मिर्ज़ा ग़ालिब

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Jagjit Singh/ जगजीत सिंह


Talat Mahmood/ तलत महमूद 







Mahendra Kapoor/ महेंद्र कपूर




3 comments:

Anonymous said...

The illustration is so beautiful, it leaves a reader with aww! and creates a bonding with profoundness of poetry. Thank you for giving us the true meaning of Mir and Galib sahab!....Rupa Bhaty

Anonymous said...

great interpretation of ghalib saheb's thought.
sounds great when combines with your thought

sneh

Manoj Joshi said...

बेहतरीन

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