फ़कीरान: आए, सदा कर चले
मियाँ ख़ुश रहो, हम दुआ कर चले
जो तुझ बिन, न जीने को कहते थे हम
सो इस 'अहद को अब वफ़ा कर चले
शिफ़ा अपनी तक़दीर ही में न थी
कि मक़्दूर तक तो दवा कर चले
पड़े ऐसे अस्बाब पायान-ए-कार
कि नाचार यूँ जी जलाकर चले
वो क्या चीज़ है आह जिसके लिए
हर इक चीज़ से दिल उठाकर चले
कोई ना-उमीदान: करते निगाह
सो तुम हम से मुँह भी छुपाकर चले
बहुत आरज़ू थी गली की तिरी
सो याँ से लहू में नहा कर चले
दिखाई दिए यूँ, कि बेख़ुद किया
हमें आप से भी जुदा कर चले
ज़बीं सजद: करते ही करते गई
हक़-ए-बंदगी हम अदा कर चले
परस्तिश की याँ तक, कि अय बुत तुझे
नज़र में सभू की ख़ुदा कर चले
झड़े फूल जिस रंग गुलबुन से यूँ
चमन में जहाँ के हम आकर चले
न देखा ग़म-ए-दोस्ताँ शुक्र है
हमीं दाग़ अपना दिखाकर चले
गई उम्र दर-बंद-ए-फ़िक्र-ए-ग़ज़ल
सो इस फ़न को ऐसा बड़ा कर चले
कहें क्या जो पूछे कोई हमसे, मीर
जहाँ में तुम आए थे, क्या कर चले
-मीर तक़ी मीर
----------------------------------------------------
मियाँ ख़ुश रहो, हम दुआ कर चले
जो तुझ बिन, न जीने को कहते थे हम
सो इस 'अहद को अब वफ़ा कर चले
शिफ़ा अपनी तक़दीर ही में न थी
कि मक़्दूर तक तो दवा कर चले
पड़े ऐसे अस्बाब पायान-ए-कार
कि नाचार यूँ जी जलाकर चले
वो क्या चीज़ है आह जिसके लिए
हर इक चीज़ से दिल उठाकर चले
कोई ना-उमीदान: करते निगाह
सो तुम हम से मुँह भी छुपाकर चले
बहुत आरज़ू थी गली की तिरी
सो याँ से लहू में नहा कर चले
दिखाई दिए यूँ, कि बेख़ुद किया
हमें आप से भी जुदा कर चले
ज़बीं सजद: करते ही करते गई
हक़-ए-बंदगी हम अदा कर चले
परस्तिश की याँ तक, कि अय बुत तुझे
नज़र में सभू की ख़ुदा कर चले
झड़े फूल जिस रंग गुलबुन से यूँ
चमन में जहाँ के हम आकर चले
न देखा ग़म-ए-दोस्ताँ शुक्र है
हमीं दाग़ अपना दिखाकर चले
गई उम्र दर-बंद-ए-फ़िक्र-ए-ग़ज़ल
सो इस फ़न को ऐसा बड़ा कर चले
कहें क्या जो पूछे कोई हमसे, मीर
जहाँ में तुम आए थे, क्या कर चले
-मीर तक़ी मीर
----------------------------------------------------
Aziz Ahmed Khan Warsi/ अज़ीज़ अहमद ख़ाँ वारसी
Roop Kumar Rathod/ रूप कुमार राठौर
Suraiya Multanikar/ सुरैया मुलतनिकर
Lata Mangeshkar/ लता मंगेशकर
No comments:
Post a Comment