जुज़ क़ैस और कोई न आया, ब रू-ए कार
सहरा, मगर, ब तंगि-ए-चश्म-ए हुसूद था
आशुफ़्तगी ने नक़्श-ए सुवैदा किया दुरुस्त
ज़ाहिर हुआ, कि दाग़ का सरमाय: दूद था
था ख़्वाब में, ख़याल को तुझ से मु`आमल:
जब आंख खुल गई, न ज़ियां था न सूद था
लेता हूं मकतब-ए ग़म-ए-दिल में सबक़ हनोज़
लेकिन यही कि, रफ़्त गया, और बूद था
ढाँपा कफ़न ने दाग़-ए `उयूब-ए बरहनगी
मैं वर्न: हर लिबास में नंग-ए वुजूद था
तेशे बग़ैर मर न सका कोहकन, असद
सरगश्त:-ए ख़ुमार-ए रुसूम-ओ-क़ुयूद था
-मिर्ज़ा ग़ालिब
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सहरा, मगर, ब तंगि-ए-चश्म-ए हुसूद था
आशुफ़्तगी ने नक़्श-ए सुवैदा किया दुरुस्त
ज़ाहिर हुआ, कि दाग़ का सरमाय: दूद था
जब आंख खुल गई, न ज़ियां था न सूद था
लेता हूं मकतब-ए ग़म-ए-दिल में सबक़ हनोज़
लेकिन यही कि, रफ़्त गया, और बूद था
ढाँपा कफ़न ने दाग़-ए `उयूब-ए बरहनगी
मैं वर्न: हर लिबास में नंग-ए वुजूद था
तेशे बग़ैर मर न सका कोहकन, असद
सरगश्त:-ए ख़ुमार-ए रुसूम-ओ-क़ुयूद था
-मिर्ज़ा ग़ालिब
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2 comments:
Hi Its Pallavi, Jagriti's sister. Can i follow blog ! Apka andaze bayan bhi lajawab hai!!!
last two lines....
itni shiddat se pyar koi karta nahi
na tab na ab
farhad uske bagair jiya to nahi aajkak to tu nahi aur sahi ....
sp
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