Saturday, July 20, 2013

004-कहते हो न देंगे

कहते हो, न देंगे हम, दिल अगर पड़ा पाया
दिल कहाँ, कि गुम कीजे, हम ने मुद्द`आ पाया

`इश्क़ से तबी`अत ने, ज़ीस्त का मज़ा पाया
दर्द की दवा पाई, दर्द-ए बे-दवा पाया

दोस्त-दार-ए-दुश्मन है ए`तिमाद-ए दिल मा`लूम
आह बे-असर देखी नाल: नारसा पाया

सादगी-ओ-पुरकारी, बेख़ुदी-ओ-हुशियारी
हुस्न को तग़ाफ़ुल में, जुरअत-आज़मा पाया

गुंच: फिर लगा खिलने, आज हम ने अपना दिल
ख़ूँ किया हुआ देखा, गुम किया हुआ पाया

हाल-ए दिल नहीं मा`लूम, लेकिन इस क़दर या`नी
हम ने बारहा ढूँढा, तुम ने बारहा पाया

शोर-ए-पन्द-ए नासेह ने ज़ख़्म पर नमक छिड़का
आप से कोई पूछे तुम ने क्या मज़ा पाया

-मिर्ज़ा ग़ालिब

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