Friday, July 19, 2013

036-फिर मुझे दीद:-ए-तर

फिर मुझे दीद:-ए-तर याद आया
दिल, जिगर-तश्न-ए-फ़रियाद आया

दम लिया था न क़यामत ने हनोज़
फिर तिरा वक़्त-ए-सफ़र याद आया

सादगीहा-ए-तमन्ना या`नी
फिर वह नैरंग-ए-नज़र याद आया

`उज़्र-ए-वा-मान्दगी, अय हसरत-ए-दिल
नाल: करता था, जिगर याद आया

ज़िन्दगी यूं भी गुज़र ही जाती
क्यों तिरा राहगुज़र याद आया

आह वह जुरअत-ए-फ़रियाद कहाँ
दिल से तंग आ के जिगर याद आया

फिर तिरे कूचे को जाता है ख़याल
दिल-ए-गुमगश्त:, मगर याद आया

कोई वीरानी-सी वीरानी है
दश्त को देख के घर याद आया

क्या ही रिज़्वाँ से लड़ाई होगी
घर तिरा ख़ुल्द में गर याद आया

मैं ने मजनूँ प लड़कपन में, असद
संग उठाया था, कि सर याद आया

-मिर्ज़ा ग़ालिब

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