Thursday, July 18, 2013

050-फिर हुआ वक़्त

फिर हुआ वक़्त, कि हो बाल-कुशा मौज-ए-शराब
दे बत-ए-मै को दिल-ओ-दस्त-ए-शिना मौज-ए-शराब

पूछ मत, वज्ह-ए-सियह-मस्ती-ए-अरबाब-ए-चमन
साय:-ए-ताक में होती है हवा, मौज-ए-शराब

जो हुआ ग़र्क़:-ए-मै बख़्त-ए-रसा रखता है
सर से गुज़रे प भी, है बाल-ए-हुमा, मौज-ए-शराब

है यह बरसात वह मौसम, कि `अजब क्या है, अगर
मौज-ए-हस्ती को करे फ़ैज़-ए-हवा, मौज-ए-शराब

चार-मौज उठती है तूफ़ान-ए-तरब से हर सू
मौज-ए-गुल, मौज-ए-शफ़क़, मौज-ए-सबा, मौज-ए-शराब

जिस क़दर रूह-ए-नबाती है जिगर-तश्न:-ए-नाज़
दे है तस्कीं बदम-ए-आब-ए-बक़ा मौज-ए-शराब

बसकि दौड़े है रग-ए-ताक में ख़ूँ हो हो कर
शहपर-ए-रंग से है बाल-कुशा, मौज-ए-शराब

मौज:-ए-गुल से चराग़ां है गुज़रगाह-ए-ख़याल
है तसव्वुर में ज़बस जल्व:-नुमा मौज-ए-शराब

नश्शे के परदे में है, महव-ए-तमाशा-ए-दिमाग़
बसकि रखती है सर-ए-नश्व-ओ-नुमा मौज-ए-शराब

एक `आलम प हैं, तूफ़ानी-ए-कैफ़ीयत-ए-फ़स्ल
मौज:-ए-सब्ज़:-ए-नौख़ेज़ से ता मौज-ए-शराब

शर्ह-ए-हँगाम:-ए-हस्ती है ज़हे मौसम-ए-गुल
रहबर-ए-क़तर: ब दरिया है, ख़ुशा मौज-ए-शराब

होश उड़ते हैं मिरे, जल्व:-ए-गुल देख असद
फिर हुआ वक़्त, कि हो बाल-कुशा मौज-ए-शराब

-मिर्ज़ा ग़ालिब

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