रहा गर कोई ता क़यामत, सलामत
फिर इक रोज़ मरना है, हज़रत सलामत
जिगर को मिरे `इश्क़-ए-ख़ूँनाब:-मशरब
लिखे है ख़ुदावन्द-ए- ने`मत सलामत
`अलर्र्ग्म-ए-दुश्मन, शहीद-ए-वफ़ा हूँ
मुबारक मुबारक, सलामत सलामत
नहीं गर सर-ओ-बर्ग-ए-इदराक-ए-मा`नी
तमाशा-ए-नैरंग-ए-सूरत, सलामत
दो-`आलम की हस्ती प ख़त्त-ए-फ़ना खेंच
दिल-ओ-दस्त-ए-अरबाब-ए-हिम्मत सलामत
नहीं गर ब काम-ए-दिल-ए-ख़स्त: गर्दूं
जिगर-ख़ाई-ए-जोश-ए-हसरत सलामत
न औरों की सुनता न कहता हूँ अपनी
सर-ए-ख़स्त:-ओ-शोर-ए-वहशत सलामत
वुफ़ूर-ए-वफ़ा है हुजूम-ए-बला है
सलामत मलामत मलामत सलामत
न फ़िक़्र-ए-सलामत न बीम-ए-मलामत
ज़ ख़ुद-रफ़तगीहा-ए-हैरत सलामत
-मिर्ज़ा ग़ालिब
फिर इक रोज़ मरना है, हज़रत सलामत
जिगर को मिरे `इश्क़-ए-ख़ूँनाब:-मशरब
लिखे है ख़ुदावन्द-ए- ने`मत सलामत
`अलर्र्ग्म-ए-दुश्मन, शहीद-ए-वफ़ा हूँ
मुबारक मुबारक, सलामत सलामत
नहीं गर सर-ओ-बर्ग-ए-इदराक-ए-मा`नी
तमाशा-ए-नैरंग-ए-सूरत, सलामत
दो-`आलम की हस्ती प ख़त्त-ए-फ़ना खेंच
दिल-ओ-दस्त-ए-अरबाब-ए-हिम्मत सलामत
नहीं गर ब काम-ए-दिल-ए-ख़स्त: गर्दूं
जिगर-ख़ाई-ए-जोश-ए-हसरत सलामत
न औरों की सुनता न कहता हूँ अपनी
सर-ए-ख़स्त:-ओ-शोर-ए-वहशत सलामत
वुफ़ूर-ए-वफ़ा है हुजूम-ए-बला है
सलामत मलामत मलामत सलामत
न फ़िक़्र-ए-सलामत न बीम-ए-मलामत
ज़ ख़ुद-रफ़तगीहा-ए-हैरत सलामत
-मिर्ज़ा ग़ालिब
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