Thursday, July 18, 2013

102-नाल: जुज़ हुस्न-ए-तलब

नाल: जुज़ हुस्न-ए-तलब, अय सितम-ईजाद:, नहीं
है तक़ाज़ा-ए-जफ़ा, शिकव:-ए-बेदाद नहीं

`इश्क़-ओ-मज़दूरी-ए-`इश्रत-गह-ए-ख़ुसरौ क्या ख़ूब
हम को तस्लीम निकोनामी-ए-फ़रहाद नहीं

कम नहीं वह भी ख़राबी में, प वुस`अत मा`लूम
दश्त में, है मुझे वह `ऐश, कि घर याद नहीं

अहल-ए-बीनिश को, है तूफ़ान-ए-हवादिस, मकतब
लतम:-ए-मौज, कम अज़ सीली-ए-उस्ताद, नहीं

वाए-महरूमी-ए-तस्लीम-ओ-बदा हाल-ए-वफ़ा
जानता है, कि हमें ताक़त-ए-फ़रियाद नहीं

रंग-ए-तमकीन-ए-गुल-ओ-लाल: परीशाँ क्यों है
गर चिराग़ान-ए-सर-ए-रह-गुज़र-ए-बाद नहीं

सबद-ए-गुल के तले बन्द करे है गुलचीं
मुज़हद: अय मुर्ग़, कि गुलज़ार में सय्याद नहीं

नफ़ी से करती है इस्बात तराविश गोया
दी है जा-ए-दहन उसको दम-ए-ईजाद, नहीं

कम नहीं, जल्व: गरी में तिरे कूचे से बिहिश्त
यही नक़्श: है, वले इस क़दर आबाद नहीं

करते किस मुंह से हो ग़ुर्बत की शिकायत, ग़ालिब
तुम को बे-मिहरी-ए-यारान-ए-वतन याद नहीं

-मिर्ज़ा ग़ालिब

No comments:

Post a Comment