ज़िक्र मेरा, ब बदी भी, उसे मंज़ूर नहीं
ग़ैर की बात बिगड़ जाए, तो कुछ दूर नहीं
वा`द:-ए-सैर-ए-गुलिस्ताँ है, ख़ुशा ताल`-ए-शौक़
मुज़हद:-ए-क़त्ल मुक़द्दर है, जो मज़कूर नहीं
शाहिद-ए-हस्ती-ए-मतलक़ की कमर है `आलम
लोग कहते हैं कि है, पर हमें मंज़ूर नहीं
क़तर: अपना भी हक़ीक़त में है दरिया, लेकिन
हम को तक़लीद-ए-तुनुक-ज़रफ़ी-ए-मंसूर नहीं
हसरत, अय ज़ौक़-ए-ख़राबी, कि वह ताक़त न रही
`इश्क़-ए-पुर-`अर्बद: की गूं तन-ए-रंजूर नहीं
मैं जो कहता हूँ, कि हम लेंगे क़यामत में तुम्हें
किस र`ऊनत से वह कहते हैं, कि हम हूर नहीं
ज़ुल्म कर, ज़ुल्म, अगर लुत्फ़ दरेग़ आता हो
तू तग़ाफ़ुल में किसी रंग से मा`ज़ूर नहीं
साफ़ दुर्दी-कश-ए-पैमान:-ए-जम हैं, हम लोग
वाए, वह बाद:, कि अफ़शरद:-ए-अँगूर नहीं
हूँ ज़हूरी के मुक़ाबिल में ख़फ़ाई ग़ालिब
मेरे दा`वे प यह हुज्जत है, कि मशहूर नहीं
-मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ैर की बात बिगड़ जाए, तो कुछ दूर नहीं
वा`द:-ए-सैर-ए-गुलिस्ताँ है, ख़ुशा ताल`-ए-शौक़
मुज़हद:-ए-क़त्ल मुक़द्दर है, जो मज़कूर नहीं
शाहिद-ए-हस्ती-ए-मतलक़ की कमर है `आलम
लोग कहते हैं कि है, पर हमें मंज़ूर नहीं
क़तर: अपना भी हक़ीक़त में है दरिया, लेकिन
हम को तक़लीद-ए-तुनुक-ज़रफ़ी-ए-मंसूर नहीं
हसरत, अय ज़ौक़-ए-ख़राबी, कि वह ताक़त न रही
`इश्क़-ए-पुर-`अर्बद: की गूं तन-ए-रंजूर नहीं
मैं जो कहता हूँ, कि हम लेंगे क़यामत में तुम्हें
किस र`ऊनत से वह कहते हैं, कि हम हूर नहीं
ज़ुल्म कर, ज़ुल्म, अगर लुत्फ़ दरेग़ आता हो
तू तग़ाफ़ुल में किसी रंग से मा`ज़ूर नहीं
साफ़ दुर्दी-कश-ए-पैमान:-ए-जम हैं, हम लोग
वाए, वह बाद:, कि अफ़शरद:-ए-अँगूर नहीं
हूँ ज़हूरी के मुक़ाबिल में ख़फ़ाई ग़ालिब
मेरे दा`वे प यह हुज्जत है, कि मशहूर नहीं
-मिर्ज़ा ग़ालिब
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