Thursday, July 18, 2013

123-वाँ उसको हौल-ए-दिल है

वाँ उसको हौल-ए-दिल है, तो याँ मैं हूँ शर्म-सार
या`नी यह मेरी आह की तासीर से न हो

अपने को देखता नहीं, ज़ौक़-ए-सितम को देख
आईन: ताकि दीद:-ए-नख़चीर से न हो

-मिर्ज़ा ग़ालिब

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