Thursday, July 18, 2013

158-सादगी पर उस की

सादगी पर उस की, मर जाने की हसरत, दिल में है
बस नहीं चलता, कि फिर ख़ंजर कफ़-ए-क़ातिल में है

देखना तक़रीर की लज़्ज़त, कि जो उसने कहा
मैं ने यह जाना, कि गोया यह भी मेरे दिल में है

गरचे: है किस किस बुराई से, वले बा ईं हम:
ज़िक्र मेरा, मुझसे बेहतर है, कि उस महफ़िल में है

बस, हुजूम-ए-ना-उमीदी, ख़ाक में मिल जाएगी
यह जो इक लज़्ज़त हमारी स`ई-ए-बे-हासिल में है

रंज-ए-रह क्यों खेंचिये वामान्दगी को `इश्क़ है
उठ नहीं सकता, हमारा जो क़दम मंज़िल में है

जल्व:-ज़ार-ए-आतिश-ए-दोज़ख़, हमारा दिल सही
फ़ितन:-ए-शोर-ए-क़यामत, किस की आब-ओ-गिल में है

है दिल-ए-शोरीद:-ए-ग़ालिब, तिलिस्म-ए-पेच-ओ-ताब
रहम कर अपनी तमन्ना पर, कि किस मुश्किल में है

-मिर्ज़ा ग़ालिब

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