`अजब निशात से जल्लाद के, चले हैं हम आगे
कि अपने साए से सर, पाँव से है दो क़दम आगे
क़ज़ा ने था मुझे चाहा, ख़राब-ए-बाद:-ए-उल्फ़त
फ़क़त ख़राब लिखा, बस न चल सका क़लम आगे
ग़म-ए-ज़मान: ने झाड़ी, निशात-ए-`इश्क़ की मस्ती
वगरन: हम भी उठाते थे लज़्ज़त-ए-अलम, आगे
ख़ुदा के वास्ते, दाद उस जुनून-ए-शौक़ की देना
कि उस के दर प पहुंचते हैं नाम:बर से हम, आगे
यह `उम्र भर जो परेशानियाँ उठाई हैं, हम ने
तुम्हारे आइयो, अय तुर्र:हा-ए-ख़म ब ख़म, आगे
दिल-ओ-जिगर में परअफ़शाँ जो एक मौज:-ए-ख़ूँ है
हम अपने ज़ा`म में समझे हुए थे उसको, दम आगे
क़सम जनाज़े प आने की मेरे खाते हैं, ग़ालिब
हमेश: खाते थे जो, मेरी जान की क़सम, आगे
-मिर्ज़ा ग़ालिब
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