Thursday, July 18, 2013

180-मैं उन्हें छेड़ूं

मैं उन्हें छेड़ूं, और कुछ न कहें
चल निकलते, जो मै पिये होते

क़हर हो, या बला हो, जो कुछ हो
काश के, तुम मिरे लिये होते

मेरी क़िस्मत में ग़म गर इतना था
दिल भी, यारब, कई दिये होते

आ ही जाता वह राह पर, ग़ालिब
कोई दिन और भी जिये होते

-मिर्ज़ा ग़ालिब

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