Thursday, July 18, 2013

181-ग़ैर लें महफ़िल में बोसे

ग़ैर लें महफ़िल में बोसे, जाम के
हम रहें यूं तश्न: लब, पैग़ाम के

ख़स्तगी का तुम से क्या शिकव: कि यह
हथकंडे हैं चर्ख़-ए-नीली फ़ाम के

ख़त लिखेंगे, गरचे: मतलब कुछ न हो
हम तो `आशिक़ हैं, तुम्हारे नाम के

रात पी ज़मज़म प मै और सुबह दम
धोए धब्बे जाम:-ए-अहराम के

दिल को आँखों ने फँसाया, क्या मगर
यह भी हल्क़े हैं तुम्हारे दाम के

शाह के है ग़ुस्ल-ए-सेहत की ख़बर
देखिये, कब दिन फिरें हम्माम के

`इश्क़ ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया
वर्न: हम भी आदमी थे काम के

-मिर्ज़ा ग़ालिब

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