Thursday, July 18, 2013

228-ख़मोशियों में तमाशा

ख़मोशियों में तमाशा अदा निकलती है
निगाह, दिल से तिरे, सुर्म: सा निकलती है

फ़शार-ए-तंगि-ए-ख़ल्वत से बनती है शबनम
सबा जो गुंचे के परदे में जा निकलती है

न पूछ सीन:-ए-`आशिक़ से आब-ए-तेग़-ए-निगाह
कि ज़ख़्म-ए-रौज़न-ए-दर से हवा निकलती है

ब रंग-ए-शीश: हूँ यक गोश:-ए-दिल-ए-ख़ाली
कभी परी मिरी ख़ल्वत में आ निकलती है

-मिर्ज़ा ग़ालिब

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