Wednesday, July 17, 2013

235-नवेद-ए-अमन है

नवेद-ए-अमन है बेदाद-ए-दोस्त, जाँ के लिये
रही न तर्ज़-ए-सितम कोई आसमाँ के लिये

बला से गर मिश.:-ए-यार तश्न-ए-ख़ूँ है
रख़ूँ कुछ अपनी भी मिश.गान-ए-ख़ूँ फ़िशाँ के लिये

वह ज़िन्द: हम हैं, कि हैं रू-शिनास-ए-ख़ल्क़, अय ख़िज़्र
न तुम, कि चोर बने `उम्र-ए-जाविदाँ के लिये

रहा बला में भी मैं मुब्तिला-ए-आफ़त-ए-रश्क
बला-ए-जाँ है अदा तेरी इक जहाँ के लिये

फ़लक न दूर रख उससे मुझे, कि मैं ही नहीं
दराज़-दस्ती-ए-क़ातिल के इम्तिहाँ के लिये

मिसाल यह मिरी कोशिश की है, कि मुर्ग़-ए-असीर
करे क़फ़स में फ़राहम ख़स आशियाँ के लिये

गदा समझ के वह चुप था, मिरी जो शामत आए
उठा, और उठ के क़दम, मैं ने पासबाँ के लिये

ब क़द्र-ए-शौक़ नहीं, ज़र्फ़-ए-तंगना-ए-ग़ज़ल
कुछ और चाहिये वुस`अत, मिरे बयाँ के लिये

दिया है ख़ल्क़ को भी, ता उसे नज़र न लगे
बना है `ऐश तजम्मुल हुसैन ख़ाँ के लिये

ज़बाँ प बार-ए-ख़ुदाया, यह किसका नाम आया
कि मेरे नुत्क़ ने बोसे मिरी ज़बाँ के लिये

नसीर-ए-दौलत-ओ-दीं, और मु`ईन-ए-मिल्लत-ओ-मुल्क
बना है चर्ख़-ए-बरीं जिस के आस्ताँ के लिये

ज़मान: `अहद में उसके है महव-ए-आराइश
बनेंगे और सितारे अब आसमाँ के लिये

वरक़ तमाम हुआ और मदह बाक़ी है
सफ़ीन: चाहिये इस बहर-ए-बेकराँ के लिये

अदा-ए-ख़ास से ग़ालिब हुआ है नुक्त:सरा
सला-ए-`आम है यारान-ए-नुक्त:-दाँ के लिये

-मिर्ज़ा ग़ालिब

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