Thursday, July 18, 2013

138-हासिल से हाथ धो बैठ

हासिल से हाथ धो बैठ, अय आरज़ू-ख़िरामी
दिल जोश-ए-गिरिय: में है डूबी हुई असामी

उस शम`अ की तरह से, जिसको कोई बुझा दे
मैं भी जले हुओं में, हूँ दाग़-ए-नातमामी

-मिर्ज़ा ग़ालिब

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