Thursday, July 18, 2013

188-सीमाब पुश्त-गर्मी-ए-आईन:

सीमाब पुश्त-गर्मी-ए-आईन: दे है, हम
हैराँ किये हुए हैं दिल-ए-बेक़रार के

आग़ोश-ए-गुल कुशूद: बरा-ए-विदा`अ है
अय `अन्दलीब चल, कि चले दिन बहार के

यूं बा`द-ए-ज़ब्त-ए-अश्क फिरूं गिरद यार के
पानी पिये किसू प कोई जैसे वार के

बा`द अज़ विदा`-ए-यार ब ख़ूँ दर तपीदह हैं
नक़्श-ए-क़दम हैं हम कफ़-ए-पा-ए-निगार के

हम मश्क़-ए-फ़िक़्र-ए-वस्ल-ओ-ग़म-ए-हिज्र से असद
लाइक़ नहीं रहे हैं ग़म-ए-रोज़गार के

-मिर्ज़ा ग़ालिब

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