Thursday, July 18, 2013

204-याद है शादी में भी

याद है शादी में भी हँगाम:-ए-यारब, मुझे
सुब्ह:-ए-ज़ाहिद हुआ है, ख़न्द: ज़ेर-ए-लब मुझे

है कुशाद-ए-ख़ातिर-ए-वाबस्त: दर रहन-ए-सुख़न
था तिलिस्म-ए-क़ुफ़्ल-ए-अबजद, ख़ान:-ए-मकतब मुझे

यारब, इस आशुफ़्तगी की दाद किस से चाहिये
रश्क, आसाइश प है ज़िन्दानियों की, अब मुझे

तब`अ है मुश्ताक़-ए-लज़्ज़तहा-ए-हसरत, क्या करूँ
आरज़ू से, है शिकस्त-ए-आरज़ू मतलब मुझे

दिल लगा कर आप भी ग़ालिब मुझी से हो गये
`इश्क़ से आते थे मान`अ मीरज़ा साहिब मुझे

-मिर्ज़ा ग़ालिब

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