Thursday, July 18, 2013

224-आमद-ए-सैलाब-ए-तूफ़ान

आमद-ए-सैलाब-ए-तूफ़ान-ए-सदा-ए-आब है
नक़्श-ए-पा जो कान में रखता है उंगली जाद: से

बज़्म-ए-मै, वहशतकद: है, किसकी चश्म-ए-मस्त का
शीशे में नब्ज़-ए-परी, पिन्हाँ है मौज-ए-बाद: से

देखता हूँ वहशत-ए-शौक़-ए-ख़रोश आमाद: से
फ़ाल-ए-रुस्वाई सिरिशक-ए-सर ब सहरा-दादह से

दाम गर सब्ज़े में पिन्हाँ कीजिये ताऊस हो
जोश-ए-नैरंग-ए-बहार-ए-`अर्ज़-ए-सहरा-दादह से

ख़ेमह-ए-लैला सियाह-ओ-ख़ान:-ए-मजनूँ ख़राब
जोश-ए-वीरानी है `इश्क़-ए-दाग़-ए-बेरूं-दादह से

बज़्म-ए-हस्ती वह तमाशा है कि जिस को हम असद
देखते हैं चश्म-ए-अज़ ख़्वाब-ए-`अदम नकशादह से

-मिर्ज़ा ग़ालिब

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