Saturday, July 20, 2013

006-शौक़ हर रंग, रक़ीब-ए सर-ओ-सामां निकला

शौक़ हर रंग, रक़ीब-ए सर-ओ-सामाँ निकला
क़ैस तसवीर के परदे में भी `उरियाँ निकला

ज़ख़्म ने दाद न दी तंगि-ए दिल की यारब
तीर भी सीन:-ए-बिस्मिल से परअफ़शाँ निकला

बू-ए-गुल, नाल:-ए-दिल, दूद-ए-चिराग़-ए महफ़िल
जो तिरी बज़्म से निकला, सो परीशाँ निकला

दिल-ए हसरतज़द: था मायद:-ए-लज़्ज़त-ए-दर्द
काम यारों का, बकद्र-ए लब-ओ-दन्दाँ निकला

थी नौआमोज़-ए फ़ना, हिम्मत-ए-दुश्वार-पसंद
सख़्त मुश्किल है, कि यह काम भी आसाँ निकला

दिल में फिर गिरिये ने इक शोर उठाया, ग़ालिब
आह जो क़तर: न निकला था, सो तूफ़ाँ निकला

-मिर्ज़ा ग़ालिब

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Mohammad Rafi/ मोहम्मद रफ़ी




Ghulam Ali/ ग़ुलाम अली




Ijaz Hussain Hazravi/ इजाज़ हुसैन

https://youtu.be/oapY0UQzEhU

1 comment:

Anonymous said...

3rd para
beautiful interpretation
4th
reflects yourself, really good
sp

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