Saturday, July 20, 2013

007-धमकी में मर गया

धमकी में मर गया, जो न बाब-ए-नबर्द था
इश्क़-ए-नबर्द-पेश:, तलबगार-ए-मर्द था

था ज़िन्दगी में मर्ग का खटका लगा हुआ
उड़ने से पेश्तर भी मिरा रंग ज़र्द था

तालीफ़-ए-नुस्ख़:हा-ए-वफ़ा कर रहा था मैं
मजमू`अ:-ए-ख़याल अभी फ़र्द फ़र्द था

दिल ता जिगर कि साहिल-ए-दरिया-ए-ख़ूँ है अब
इस रहगुज़र में जलव:-ए-गुल आगे गर्द था

जाती है कोई कशमकश अन्दोह-ए-इश्क़ की
दिल भी अगर गया, तो वही दिल का दर्द था

अहबाब चार:-साज़ि-ए-वहशत न कर सके
ज़िन्दाँ में भी ख़याल, बयाबाँ-नवर्द था

यह लाश-ए-बेकफ़न, असद-ए-ख़स्त: जाँ की है
हक़ मग़फ़िरत करे, `अजब आज़ाद मर्द था

-मिर्ज़ा ग़ालिब

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1 comment:

Anonymous said...

1 2 3
baut badhiya

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