शुमार-ए-सुब्ह: मरग़ूब-ए बुत-ए-मुश्किल-पसंद आया
तमाशा-ए-बयक-कफ़-बुरदन-ए-सद-दिल पसंद आया
बफ़ैज़-ए-बेदिली नौमीदि-ए-जावेद आसाँ है
कुशाइश को हमारा `उक़द:-ए-मुश्किल पसंद आया
हवा-ए-सैर-ए-गुल, आईन:-ए-बेमेहरि-ए-क़ातिल
कि अंदाज़-ए-बख़ूँ-ग़लतीदन-ए-बिस्मिल पसंद आया
-मिर्ज़ा ग़ालिब
--------------------------------------------------------------------------
तमाशा-ए-बयक-कफ़-बुरदन-ए-सद-दिल पसंद आया
बफ़ैज़-ए-बेदिली नौमीदि-ए-जावेद आसाँ है
कुशाइश को हमारा `उक़द:-ए-मुश्किल पसंद आया
हवा-ए-सैर-ए-गुल, आईन:-ए-बेमेहरि-ए-क़ातिल
कि अंदाज़-ए-बख़ूँ-ग़लतीदन-ए-बिस्मिल पसंद आया
-मिर्ज़ा ग़ालिब
--------------------------------------------------------------------------
No comments:
Post a Comment