दह्र में, नक़्श-ए-वफ़ा, वजह-ए-तसल्ली न हुआ
है यह वह लफ़्ज़, कि शर्मिंद:-ए-म'अनी न हुआ
सब्ज़:-ए-ख़त से तिरा, काकुल-ए-सरकश न दबा
यह ज़मुर्रद भी हरीफ़-ए दम-ए-अफ़`ई न हुआ
मैं ने चाहा था कि अन्दॊह-ए-वफ़ा से छूटूँ
वह सितमगर मिरे मरने प भी राज़ी न हुआ
दिल गुज़रगाह-ए-ख़याल-ए-मै-ओ-साग़र ही सही
गर नफ़स जाद:-ए-सरमंजिल-ए-तक़वा न हुआ
हूँ तिरे व`अ द: न करने में भी राज़ी, कि कभी
गोश मिन्नत-कश-ए-गुलबाँग-ए-तसल्ली न हुआ
किस से महरूमि-ए-क़िस्मत की शिकायत कीजे
हम ने चाहा था कि मर जाएँ, सो वह भी न हुआ
मर गया सदम:-ए-यक-जुंबिश-ए-लब से ग़ालिब
नातवानी से हरीफ़-ए-दम-ए-ईसा न हुआ
-मिर्ज़ा ग़ालिब
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है यह वह लफ़्ज़, कि शर्मिंद:-ए-म'अनी न हुआ
सब्ज़:-ए-ख़त से तिरा, काकुल-ए-सरकश न दबा
यह ज़मुर्रद भी हरीफ़-ए दम-ए-अफ़`ई न हुआ
मैं ने चाहा था कि अन्दॊह-ए-वफ़ा से छूटूँ
वह सितमगर मिरे मरने प भी राज़ी न हुआ
दिल गुज़रगाह-ए-ख़याल-ए-मै-ओ-साग़र ही सही
गर नफ़स जाद:-ए-सरमंजिल-ए-तक़वा न हुआ
हूँ तिरे व`अ द: न करने में भी राज़ी, कि कभी
गोश मिन्नत-कश-ए-गुलबाँग-ए-तसल्ली न हुआ
किस से महरूमि-ए-क़िस्मत की शिकायत कीजे
हम ने चाहा था कि मर जाएँ, सो वह भी न हुआ
मर गया सदम:-ए-यक-जुंबिश-ए-लब से ग़ालिब
नातवानी से हरीफ़-ए-दम-ए-ईसा न हुआ
-मिर्ज़ा ग़ालिब
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Lata Mangeshkar/ लता मंगेशकर
Leela Ghosh/ लीला घोष
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