सताइशगर है ज़ाहिद इस क़दर, जिस बाग़-ए-रिज़्वाँ का
वह इक गुलदस्त: है हम बेख़ुदों के ताक़-ए-निसियाँ का
बयाँ क्या कीजिये बेदाद-ए-काविशहा-ए-मिशगाँ का
कि हर इक क़तर:-ए-ख़ूँ दान: है तसबीह-ए-मरजाँ का
न आई सतवत-ए-क़ातिल भी मान`अ, मेरे नालों को
लिया दाँतों में जो तिनका, हुआ रेश: नयस्ताँ का
दिखाऊँगा तमाशा, दी अगर फ़ुरसत ज़माने ने
मिरा हर दाग़-ए-दिल, इक तुख़्म है सर्व-ए-चराग़ां का
किया आईन:-ख़ाने का वह नक़्श:, तेरे जल्वे ने
करे, जो परतव-ए-ख़ुर्शीद, `आलम शबनमिस्ताँ का
मिरी ता`मीर में मुज़मिर, है इक सूरत ख़राबी की
हयूला बर्क़-ए-ख़िरमन का, है ख़ून-ए-गर्म दहक़ां का
उगा है घर में हर सू सब्ज़:, वीरानी तमाशा कर
मदार अब खोदने पर घास के है, मेरे दरबाँ का
ख़मोशी में निहाँ, ख़ूँ-गश्त: लाखों आरज़ूएँ हैं
चराग़-ए-मुर्द: हूँ, मैं बेज़बाँ, गोर-ए-ग़रीबाँ का
हनोज़ इक परतव-ए-नक़्श-ए ख़याल-ए-यार बाक़ी है
दिल-ए-अफ़सुर्द:, गोया, हुजर: है यूसुफ़ के ज़िन्दाँ का
बग़ल में ग़ैर की, आज आप सोते हैं कहीं, वर्न:
सबब क्या, ख़्वाब में आ कर तबस्सुमहा-ए-पिन्हाँ का
नहीं मा`लूम, किस किस का लहू पानी हुआ होगा
क़यामत है, सरश्क-आलूद: होना तेरी मिशगाँ का
नज़र में है हमारी जाद:-ए राह-ए-फ़ना ग़ालिब
कि यह शीराज़: है `आलम के अज्ज़ा-ए-परीशाँ का
-मिर्ज़ा ग़ालिब
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वह इक गुलदस्त: है हम बेख़ुदों के ताक़-ए-निसियाँ का
बयाँ क्या कीजिये बेदाद-ए-काविशहा-ए-मिशगाँ का
कि हर इक क़तर:-ए-ख़ूँ दान: है तसबीह-ए-मरजाँ का
न आई सतवत-ए-क़ातिल भी मान`अ, मेरे नालों को
लिया दाँतों में जो तिनका, हुआ रेश: नयस्ताँ का
दिखाऊँगा तमाशा, दी अगर फ़ुरसत ज़माने ने
मिरा हर दाग़-ए-दिल, इक तुख़्म है सर्व-ए-चराग़ां का
किया आईन:-ख़ाने का वह नक़्श:, तेरे जल्वे ने
करे, जो परतव-ए-ख़ुर्शीद, `आलम शबनमिस्ताँ का
मिरी ता`मीर में मुज़मिर, है इक सूरत ख़राबी की
हयूला बर्क़-ए-ख़िरमन का, है ख़ून-ए-गर्म दहक़ां का
उगा है घर में हर सू सब्ज़:, वीरानी तमाशा कर
मदार अब खोदने पर घास के है, मेरे दरबाँ का
ख़मोशी में निहाँ, ख़ूँ-गश्त: लाखों आरज़ूएँ हैं
चराग़-ए-मुर्द: हूँ, मैं बेज़बाँ, गोर-ए-ग़रीबाँ का
हनोज़ इक परतव-ए-नक़्श-ए ख़याल-ए-यार बाक़ी है
दिल-ए-अफ़सुर्द:, गोया, हुजर: है यूसुफ़ के ज़िन्दाँ का
बग़ल में ग़ैर की, आज आप सोते हैं कहीं, वर्न:
सबब क्या, ख़्वाब में आ कर तबस्सुमहा-ए-पिन्हाँ का
नहीं मा`लूम, किस किस का लहू पानी हुआ होगा
क़यामत है, सरश्क-आलूद: होना तेरी मिशगाँ का
नज़र में है हमारी जाद:-ए राह-ए-फ़ना ग़ालिब
कि यह शीराज़: है `आलम के अज्ज़ा-ए-परीशाँ का
-मिर्ज़ा ग़ालिब
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