Saturday, July 20, 2013

011-न होगा यक-बयाबाँ

न होगा यक-बयाबाँ मांदगी से ज़ौक़ कम मेरा
हबाब-ए-मौज:-ए-रफ़्तार है नक़्श-ए-क़दम मेरा

मुहब्बत थी चमन से, लेकिन अब यह बे-दिमाग़ी है
कि मौज-ए-बू-ए-गुल से, नाक में आता है दम मेरा

-मिर्ज़ा ग़ालिब

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