शब, कि बर्क़-ए-सोज़-ए-दिल से, ज़हर:-ए-अब्र आब था
शो`ल:-ए-जव्वाल: हर इक हल्क़:-ए-गिरदाब था
वाँ करम को, `उज़्र-ए-बारिश, था `इनांगीर-ए-ख़िराम
गिरिये से याँ, पंब:-ए-बालिश कफ़-ए-सैलाब था
वाँ, ख़ुदआराई को, था मोती पिरोने का ख़याल
याँ, हुजूम-ए-अश्क़ में तार-ए-निगह नायाब था
जलव:-ए-गुल ने किया था वाँ चिराग़ां आब-ए-जू
याँ, रवां मिश़गान-ए-चश्म-ए तर से ख़ून-ए-नाब था
याँ, सर-ए-पुरशोर बेख़्वाबी से था दीवार-जू
वाँ, वह फ़र्क़-ए-नाज़ महव-ए-बालिश-ए-कमख़्वाब था
याँ, नफ़स करता था रौशन शम`अ-ए-बज़्म-ए-बेख़ुदी
जलव:-ए-गुल, वाँ, बिसात-ए-सोहबत-ए-अहबाब था
फ़र्श से ता `अर्श, वाँ तूफ़ां था मौज-ए-रंग का
याँ ज़मीं से आसमां तक सोख़तन का बाब था
नागहाँ इस रंग से ख़ूंनाब: टपकाने लगा
दिल, कि ज़ौक़-ए-काविश-ए-नाख़ुन से लज़्ज़तयाब था
-मिर्ज़ा ग़ालिब
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शो`ल:-ए-जव्वाल: हर इक हल्क़:-ए-गिरदाब था
वाँ करम को, `उज़्र-ए-बारिश, था `इनांगीर-ए-ख़िराम
गिरिये से याँ, पंब:-ए-बालिश कफ़-ए-सैलाब था
वाँ, ख़ुदआराई को, था मोती पिरोने का ख़याल
याँ, हुजूम-ए-अश्क़ में तार-ए-निगह नायाब था
जलव:-ए-गुल ने किया था वाँ चिराग़ां आब-ए-जू
याँ, रवां मिश़गान-ए-चश्म-ए तर से ख़ून-ए-नाब था
याँ, सर-ए-पुरशोर बेख़्वाबी से था दीवार-जू
वाँ, वह फ़र्क़-ए-नाज़ महव-ए-बालिश-ए-कमख़्वाब था
याँ, नफ़स करता था रौशन शम`अ-ए-बज़्म-ए-बेख़ुदी
जलव:-ए-गुल, वाँ, बिसात-ए-सोहबत-ए-अहबाब था
फ़र्श से ता `अर्श, वाँ तूफ़ां था मौज-ए-रंग का
याँ ज़मीं से आसमां तक सोख़तन का बाब था
नागहाँ इस रंग से ख़ूंनाब: टपकाने लगा
दिल, कि ज़ौक़-ए-काविश-ए-नाख़ुन से लज़्ज़तयाब था
-मिर्ज़ा ग़ालिब
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