Friday, July 19, 2013

016-नाल:-ए-दिल में शब

नाल:-ए-दिल में शब, अंदाज़-ए-असर नायाब था
था सिपन्द-ए-बज़्म-ए-वस्ल-ए-ग़ैर, गो बेताब था

मक़्दम-ए-सैलाब से, दिल क्या नशात-आहंग है,
ख़ान:-ए-`आशिक़, मगर साज़-ए-सदा-ए-आब था

नाज़िश-ए-अय्याम-ए-ख़ाकिस्तर-नशीनी, क्या कहूँ
पहलू-ए-अन्देश:, वख़्फ़-ए-बिस्तर-ए-संजाब था

कुछ न की, अपनी जुनून-ए-नारसा ने, वर्न: याँ
ज़र्र: ज़र्र:, रूकश-ए-ख़ुर्शीद-ए-`आलम-ताब था

आज क्यों परवा नहीं, अपने असीरों की तुझे
कल तलक, तेरा भी दिल मेहर-ओ-वफ़ा का बाब था

याद कर वह दिन, कि हर इक हलक़: तेरे दाम का
इन्तिज़ार-ए-सैद में, इक दीद:-ए-बेख़्वाब था

मैं ने रोका रात ग़ालिब को, वगर्न: देखते
उस के सैल-ए-गिरय: में, गर्दूं कफ़-ए-सैलाब था

-मिर्ज़ा ग़ालिब

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