गर न अन्दोह-ए-शब-ए-फ़ुरक़त बयाँ हो जाएगा
बेतक़ल्लुफ़ दाग़-ए-मह, मुहर-ए-दहाँ हो जाएगा
ज़हर: गर ऐसा ही शाम-ए-हिज्र में होता है आब
परतव-ए-महताब, सैल-ए-ख़ान्माँ हो जाएगा
ले तो लूँ, सोते में उस के पांव का बोस:, मगर
ऐसी बातों से, वह काफ़िर बदगुमाँ हो जाएगा
दिल को हम सर्फ़-ए-वफ़ा समझे थे क्या मा`लूम था
या`नी, यह पहले ही नज़र-ए-इम्तिहाँ हो जाएगा
सब के दिल में है जगह तेरी, जो तू राज़ी हुआ
मुझ प गोया इक ज़मान: मिहरबां हो जाएगा
गर निगाह-ए-गर्म फ़रमाती रही, ता`लीम-ए-ज़ब्त
शो`ल: ख़स में, जैसे ख़ूँ रग में, निहाँ हो जाएगा
बाग़ में मुझको न ले जा, वरन: मेरे हाल पर
हर गुल-ए-तर एक चश्म-ए-ख़ूँफ़िशाँ हो जाएगा
वाए, गर मेरा तिरा इंसाफ़, महशर में न हो
अब तलक तो यह तवक़्क़ो`अ है कि वाँ हो जाएगा
फ़ायद: क्या, सोच, आख़िर तू भी दाना है, असद
दोस्ती नादाँ की है जी का ज़ियाँ हो जाएगा
-मिर्ज़ा ग़ालिब
बेतक़ल्लुफ़ दाग़-ए-मह, मुहर-ए-दहाँ हो जाएगा
ज़हर: गर ऐसा ही शाम-ए-हिज्र में होता है आब
परतव-ए-महताब, सैल-ए-ख़ान्माँ हो जाएगा
ले तो लूँ, सोते में उस के पांव का बोस:, मगर
ऐसी बातों से, वह काफ़िर बदगुमाँ हो जाएगा
दिल को हम सर्फ़-ए-वफ़ा समझे थे क्या मा`लूम था
या`नी, यह पहले ही नज़र-ए-इम्तिहाँ हो जाएगा
सब के दिल में है जगह तेरी, जो तू राज़ी हुआ
मुझ प गोया इक ज़मान: मिहरबां हो जाएगा
गर निगाह-ए-गर्म फ़रमाती रही, ता`लीम-ए-ज़ब्त
शो`ल: ख़स में, जैसे ख़ूँ रग में, निहाँ हो जाएगा
बाग़ में मुझको न ले जा, वरन: मेरे हाल पर
हर गुल-ए-तर एक चश्म-ए-ख़ूँफ़िशाँ हो जाएगा
वाए, गर मेरा तिरा इंसाफ़, महशर में न हो
अब तलक तो यह तवक़्क़ो`अ है कि वाँ हो जाएगा
फ़ायद: क्या, सोच, आख़िर तू भी दाना है, असद
दोस्ती नादाँ की है जी का ज़ियाँ हो जाएगा
-मिर्ज़ा ग़ालिब
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