Friday, July 19, 2013

030-जब, ब तक़रीब-ए-सफ़र

जब, ब तक़रीब-ए-सफ़र, यार ने महमिल बाँधा
तपिश-ए-शौक़ ने हर ज़र्रे प इक दिल बाँधा

अहल-ए-बीनिश ने ब हैरत-कद:-ए-शोख़ी-ए-नाज़
जौहर-ए-आइन: को तूती-ए-बिस्मिल बाँधा

यास-ओ-उम्मीद ने यक, `अरबद:-मैदाँ माँगा
`अज्ज़-ए-हिम्मत ने तिलिस्म-ए-दिल-ए-साइल बाँधा

न बंधे तश्नगी-ए-शौक़ के मज़मूँ, ग़ालिब
गरचे: दिल खोल के दरिया को भी साहिल बाँधा

इसतिलाहात-ए-असीरान-ए-तग़ाफ़ुल मत पूछ
जो गिरह आप न खोली उसे मुश्किल बाँधा

यार ने तश्नगी-ए-शौक़ के मज़मूँ चाहे
हम ने दिल खोल के दरिया को भी साहिल बाँधा

तपिश-ए-आइन: परदाज़-ए-तमन्ना लाई
नामह-ए-शौक़ ब बाल-ए-पर-ए-बिस्मिल बाँधा

दीद: ता दिल है यक आईन: चराग़ां किसने
ख़ल्वत-ए-नाज़ प पेरायह-ए-महफ़िल बाँधा

ना-उमीदी ने ब तक़रीब-ए-मज़ामीन-ए-ख़ुमार
कूच:-ए-मौज को ख़मयाज़ह-ए-साहिल बाँधा

मुतरिब-ए-दिल ने मिरे तार-ए-नफ़स से, ग़ालिब
साज़ पर रिश्त: पए-नग़म:-ए-बेदिल बाँधा

-मिर्ज़ा ग़ालिब
 

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