Friday, July 19, 2013

033-न था कुछ तो ख़ुदा था

न था कुछ तो ख़ुदा था, कुछ न होता, तो ख़ुदा होता
डुबोया मुझ को होने ने, न होता मैं तो क्या होता

हुआ जब ग़म से यूं बेहिस, तो ग़म क्या सर के कटने का
न होता गर जुदा तन से, तो ज़ानू पर धरा होता

हुई मुद्दत कि ग़ालिब मर गया, पर याद आता है
वह हर इक बात पर कहना, कि यूं होता, तो क्या होता

-मिर्ज़ा ग़ालिब

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