Friday, July 19, 2013

039-तू दोस्त किसी का भी

तू दोस्त किसी का भी, सितमगर, न हुआ था
औरों प है वह ज़ुल्म, कि मुझ पर न हुआ था

छोड़ा मह-ए-नख़्शब की तरह, दस्त-ए-क़ज़ा ने
ख़ुर्शीद हनोज़ उस के बराबर न हुआ था

तौफ़ीक़ ब अँदाज़-ए-हिम्मत है अज़ल से
आँखों में है वह क़तर:, कि गौहर न हुआ था

जब तक कि न देखा था, क़द-ए-यार का `आलम
मैं मो`तक़िद-ए-फ़ितन:-ए-महशर न हुआ था

मैं साद: दिल आज़ुर्दगी-ए-यार से ख़ुश हूँ
या`नी सबक़-ए-शौक़, मुक़र्रर न हुआ था

दरिया-ए-म`आसी, तुनुक-आबी से, हुआ ख़ुश्क
मेरा सर-ए-दामन भी अभी तर न हुआ था

जारी थी असद, दाग़-ए-जिगर से मिरी तहसील
आतिशकद:, जागीर-ए-समन्दर न हुआ था

-मिर्ज़ा ग़ालिब

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