Friday, July 19, 2013

047-जौर से बाज़ आए

जौर से बाज़ आए पर बाज़ आयें क्या
कहते हैं हम तुझ को मुंह दिखलायें क्या

रात दिन, गर्दिश में हैं सात आसमाँ
हो रहेगा कुछ न कुछ, घबरायें क्या

लाग हो, तो उसको हम समझें लगाव
जब न हो कुछ भी, तो धोका खायें क्या

हो लिये क्यों नाम:-बर के साथ साथ
यारब, अपने ख़त को हम पहुंचायें क्या

मौज-ए-ख़ूँ सर से गुज़र ही क्यों न जाए
आस्तान-ए-यार से उठ जायें क्या

`उम्र भर देखा किए, मरने की राह
मर गये पर, देखिये, दिखलायें क्या

पूछते हैं वह, कि ग़ालिब कौन है
कोई बतलाओ, कि हम बतलायें क्या

-मिर्ज़ा ग़ालिब

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