गुलशन में बन्द-ओ-बस्त ब रंग-ए-दिगर, है आज
क़ुमरी का तौक़ हल्क़:-ए-बैरून-ए-दर, है आज
आता है एक पार:-ए-दिल हर फ़ुग़ां के साथ
तार-ए-नफ़स, कमन्द-ए-शिकार-ए-असर, है आज
अय `आफ़ियत, किनार: कर अय इन्तिज़ाम चल
सैलाब-ए-गिरिय: दर-प-ए-दीवार-ओ-दर, है आज
-मिर्ज़ा ग़ालिब
क़ुमरी का तौक़ हल्क़:-ए-बैरून-ए-दर, है आज
आता है एक पार:-ए-दिल हर फ़ुग़ां के साथ
तार-ए-नफ़स, कमन्द-ए-शिकार-ए-असर, है आज
अय `आफ़ियत, किनार: कर अय इन्तिज़ाम चल
सैलाब-ए-गिरिय: दर-प-ए-दीवार-ओ-दर, है आज
-मिर्ज़ा ग़ालिब
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