Thursday, July 18, 2013

058-हुस्न ग़मज़े की कशाकश से

हुस्न, ग़मज़े की कशाकश से छुटा, मेरे बा`द
बारे, आराम से हैं अहल-ए-जफ़ा, मेरे बा`द

मंसब-ए-शेफ़ितगी के कोई क़ाबिल न रहा
हुई मा`ज़ूली-ए-अँदाज़-ओ-अदा, मेरे बा`द

शम`अ बुझती है, तो उस में से धुआँ उठता है
शो’ल:-ए-`इश्क़ सियह-पोश हुआ, मेरे बा`द

ख़ूँ है दिल ख़ाक में अहवाल-ए-बुताँ पर, या`नी
उन के नाख़ुन हुए-मुहताज-ए-हिना, मेरे बा`द

दरख़ुर-ए-`अर्ज़ नहीं, जौहर-ए-बेदाद को, जा
निगह-ए-नाज़ है सुरमे से ख़फ़ा, मेरे बा`द

है जुनूँ, अहल-ए-जुनूँ के लिये आग़ोश-ए-विदा`
चाक होता है गरीबाँ से जुदा, मेरे बा`द

कौन होता है हरीफ़-ए-मै-ए-मर्द-अफ़गन-ए-`इश्क़
है मुक़र्रर लब-ए-साक़ी में सला, मेरे बा`द

ग़म से मरता हूँ, कि इतना नहीं दुनिया में कोई
कि करे ता`ज़ियत-ए-मेहर-ओ-वफ़ा, मेरे बा`द

आए-है बेकसी-ए-`इश्क़ प रोना, ग़ालिब
किस के घर जाएगा सैलाब-ए-बला, मेरे बा`द

-मिर्ज़ा ग़ालिब

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