Thursday, July 18, 2013

059-बला से हैं जो यह पेश-ए-नज़र

बला से हैं, जो यह पेश-ए-नज़र दर-ओ-दीवार
निगाह-ए-शौक़ को हैं, बाल-ओ-पर दर-ओ-दीवार

वुफ़ूर-ए-अश्क ने काशाने का किया यह रंग
कि हो गए-मिरे दीवार-ओ-दर, दर-ओ-दीवार

नहीं है साय: कि सुन कर नवेद-ए-मक़दम-ए-यार
गए-हैं चन्द क़दम पेश्तर, दर-ओ-दीवार

हुई है किस क़दर अरज़ानी-ए-मै-ए-जल्व:
कि मस्त है तिरे कूचे में हर दर-ओ-दीवार

जो है तुझे सर-ए-सौदा-ए-इंतज़ार, तो आ
कि हैं दुकान-ए-मता`-ए-नज़र दर-ओ-दीवार

हुजूम-ए-गिरिय: का सामान कब किया मैंने
कि गिर पड़े न मिरे पाँव पर दर-ओ-दीवार

वह आ रहा मिरे हमसाये में, तो साये से
हुए-फ़िदा दर-ओ-दीवार पर, दर-ओ-दीवार

नज़र में खटके है, बिन तेरे, घर की आबादी
हमेश: रोते हैं हम, देख कर दर-ओ-दीवार

न पूछ बेख़ुदी-ए-`ऐश-ए-मक़दम-ए-सैलाब
कि नाचते हैं पड़े, सर ब सर दर-ओ-दीवार

न कह किसी से, कि ग़ालिब नहीं ज़माने में
हरीफ़-ए-राज़-ए-मुहब्बत, मगर दर-ओ-दीवार

-मिर्ज़ा ग़ालिब

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