क्यों जल गया न ताब-ए-रुख़-ए-यार देखकर
जलता हूँ, अपनी ताक़त-ए-दीदार देखकर
आतिश-परस्त कहते हैं अहल-ए-जहाँ मुझे
सरगर्म-ए-नाल:हा-ए-शरर-बार देख कर
क्या आबरू-ए-`इश्क़, जहाँ `आम हो जफ़ा
रुकता हूँ तुम को बेसबब आज़ार देख कर
आता है मेरे क़त्ल को, पर जोश-ए-रश्क से
मरता हूँ उस के हाथ में तलवार देख कर
साबित हुआ है, गर्दन-ए-मीना प ख़ून-ए-ख़ल्क़
लरज़े है मौज-ए-मै तिरी रफ़्तार देख कर
वा हसरता, कि यार ने खेंचा सितम से हाथ
हम को हरीस-ए-लज़्ज़त-ए-आज़ार देख कर
बिक जाते हैं हम आप, मता`-ए-सुख़न के साथ
लेकिन `अयार-ए-तब`-ए-ख़रीदार देख कर
ज़ुन्नार बाँध सुब्ह:-ए-सद-दान: तोड़ डाल
रहरौ चले है राह को, हमवार देख
इन आबिलों से पाँव के, घबरा गया था मैं
जी ख़ुश हुआ है राह को पुर ख़ार देख कर
क्या बदगुमाँ है मुझसे, कि आईने में मिरे
तूती का `अक्स समझे है, ज़ंगार देख कर
गिरनी थी हम प बर्क़-ए-तजल्ली, न तूर पर
देते हैं बाद:, ज़र्फ़-ए-क़दह-ख़्वार देख कर
सर फोड़ना वह, ग़ालिब-ए-शोरीद:-हाल का
याद आ गया मुझे, तिरी दीवार देख कर
-मिर्ज़ा ग़ालिब
जलता हूँ, अपनी ताक़त-ए-दीदार देखकर
आतिश-परस्त कहते हैं अहल-ए-जहाँ मुझे
सरगर्म-ए-नाल:हा-ए-शरर-बार देख कर
क्या आबरू-ए-`इश्क़, जहाँ `आम हो जफ़ा
रुकता हूँ तुम को बेसबब आज़ार देख कर
आता है मेरे क़त्ल को, पर जोश-ए-रश्क से
मरता हूँ उस के हाथ में तलवार देख कर
साबित हुआ है, गर्दन-ए-मीना प ख़ून-ए-ख़ल्क़
लरज़े है मौज-ए-मै तिरी रफ़्तार देख कर
वा हसरता, कि यार ने खेंचा सितम से हाथ
हम को हरीस-ए-लज़्ज़त-ए-आज़ार देख कर
बिक जाते हैं हम आप, मता`-ए-सुख़न के साथ
लेकिन `अयार-ए-तब`-ए-ख़रीदार देख कर
ज़ुन्नार बाँध सुब्ह:-ए-सद-दान: तोड़ डाल
रहरौ चले है राह को, हमवार देख
इन आबिलों से पाँव के, घबरा गया था मैं
जी ख़ुश हुआ है राह को पुर ख़ार देख कर
क्या बदगुमाँ है मुझसे, कि आईने में मिरे
तूती का `अक्स समझे है, ज़ंगार देख कर
गिरनी थी हम प बर्क़-ए-तजल्ली, न तूर पर
देते हैं बाद:, ज़र्फ़-ए-क़दह-ख़्वार देख कर
सर फोड़ना वह, ग़ालिब-ए-शोरीद:-हाल का
याद आ गया मुझे, तिरी दीवार देख कर
-मिर्ज़ा ग़ालिब
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