सफ़ा-ए-हैरत-ए-आईन: है, सामान-ए-ज़ंग आख़िर
तग़य्युर आब-ए-बरजा-माँद: का पाता है रंग आख़िर
न की सामान-ए-`ऐश-ओ-जाह ने तदबीर वहशत की
हुआ जाम-ए-ज़मर्रुद भी मुझे, दाग़-ए-पलँग आख़िर
-मिर्ज़ा ग़ालिब
तग़य्युर आब-ए-बरजा-माँद: का पाता है रंग आख़िर
न की सामान-ए-`ऐश-ओ-जाह ने तदबीर वहशत की
हुआ जाम-ए-ज़मर्रुद भी मुझे, दाग़-ए-पलँग आख़िर
-मिर्ज़ा ग़ालिब
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