जुनूँ की दस्तगीरी किससे हो, गर हो न `उरयानी
गरीबाँ चाक का हक़ हो गया है, मेरी गर्दन पर
बरंग-ए-काग़ज़-ए-आतिश-ज़द: नैरंग-ए-बेताबी
हज़ार आईन: दिल बाँधे है बाल-ए-यक तपीदन पर
फ़लक से, हम को `ऐश-ए-रफ़्त: का, क्या क्या तक़ाज़ा है
मता`-ए-बुर्द: को, समझे हुए-हैं क़र्ज़, रहज़न पर
हम और वह बेसबब रंज, आश्ना दुश्मन, कि रखता है
शु`आ-ए-मेहर से, तुहमत निगह की, चश्म-ए-रौज़न पर
फ़ना को सौंप, गर मुश्ताक़ है अपनी हक़ीक़त का
फ़रोग़-ए-ताल`-ए-ख़ाशाक है मौक़ूफ़ गुलख़न पर
असद बिस्मिल है किस अँदाज़ का, क़ातिल से कहता है
कि, मश्क़-ए-नाज़ कर, ख़ून-ए-दो-`आलम मेरी गर्दन पर
फ़ुसून-ए-यक-दिली है लज़्ज़त-ए-बेदाद दुश्मन पर
कि वजह-ए-बर्क़ जयूं परवान: बाल-अफ़शाँ है ख़िरमन पर
तक़ल्लुफ़ ख़ार-ख़ार-ए-इलतिमास-ए-बे-क़रारी है
कि रिश्त: बाँधता है पैरहन अँगुश्त-ए-सोज़न पर
-मिर्ज़ा ग़ालिब
गरीबाँ चाक का हक़ हो गया है, मेरी गर्दन पर
बरंग-ए-काग़ज़-ए-आतिश-ज़द: नैरंग-ए-बेताबी
हज़ार आईन: दिल बाँधे है बाल-ए-यक तपीदन पर
फ़लक से, हम को `ऐश-ए-रफ़्त: का, क्या क्या तक़ाज़ा है
मता`-ए-बुर्द: को, समझे हुए-हैं क़र्ज़, रहज़न पर
हम और वह बेसबब रंज, आश्ना दुश्मन, कि रखता है
शु`आ-ए-मेहर से, तुहमत निगह की, चश्म-ए-रौज़न पर
फ़ना को सौंप, गर मुश्ताक़ है अपनी हक़ीक़त का
फ़रोग़-ए-ताल`-ए-ख़ाशाक है मौक़ूफ़ गुलख़न पर
असद बिस्मिल है किस अँदाज़ का, क़ातिल से कहता है
कि, मश्क़-ए-नाज़ कर, ख़ून-ए-दो-`आलम मेरी गर्दन पर
फ़ुसून-ए-यक-दिली है लज़्ज़त-ए-बेदाद दुश्मन पर
कि वजह-ए-बर्क़ जयूं परवान: बाल-अफ़शाँ है ख़िरमन पर
तक़ल्लुफ़ ख़ार-ख़ार-ए-इलतिमास-ए-बे-क़रारी है
कि रिश्त: बाँधता है पैरहन अँगुश्त-ए-सोज़न पर
-मिर्ज़ा ग़ालिब
No comments:
Post a Comment