Thursday, July 18, 2013

068-फ़ारिग़ मुझे न जान

फ़ारिग़ मुझे न जान, कि मानिन्द-ए-सुबह-ओ-मेहर
है दाग़-ए-`इश्क़, ज़ीनत-ए-जैब-ए-कफ़न हनोज़

है नाज़-ए-मुफ़लिसां ज़र-ए-अज़-दस्त-रफ़्त: पर
हूँ गुल-फ़रोश-ए-शोख़ी-ए-दाग़-ए-कुहन हनोज़

मैख़ान:-ए-जिगर में यहाँ ख़ाक भी नहीं
ख़मयाज़ह खेंचे है बुत-ए-बेदाद-फ़न हनोज़

जूं जाद:ह सर ब कू-ए-तमन्ना-ए-बे-दिली
ज़ंजीर-ए-पा है रिश्त:-ए-हुबब उल-वतन हनोज़

-मिर्ज़ा ग़ालिब

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