हरीफ़-ए-मतलब-ए-मुश्किल नहीं, फ़ुसून-ए-नियाज़
दु`आ क़बूल हो यारब कि `उम्र-ए-ख़िज़्र दराज़
न हो बहरज़: बयाबाँ-नवर्द-ए-वहम-ए-वुजूद
हनोज़ तेरे तसव्वुर में है नशेब-ओ-फ़राज़
विसाल जल्व: तमाशा है, पर दिमाग़ कहाँ
कि दीजे आइन:-ए-इंतज़ार को परदाज़
हर एक ज़र्र:-ए-`आशिक़ है आफ़ताब परस्त
गई न ख़ाक हुए पर, हवा-ए-जल्व:-ए-नाज़
न पूछ वुस`अत-ए-मै-ख़ान:-ए-जुनूँ, ग़ालिब
जहाँ यह कास:-ए-गर्दूं, है एक ख़ाक-अँदाज़
फ़रेब-ए-स`नत-ए-ईजाद: का तमाशा देख
निगाह `अक्स-फ़रोश-ओ-ख़याल आइन:-साज़
ज़ बसकि जल्व:-ए-सैयाद हैरत-आरा है
उड़ी है सफ़हह-ए-ख़ातिर से सूरत-ए-परवाज़
हुजूम-ए-फ़िक़्र से दिल मिस्ल-ए-मौज लरज़ाँ है
कि शीश: नाज़ुक-ओ-सहबा है आब-गीन:-गुदाज़
असद से तर्क-ए-वफ़ा का गुमाँ वह मा`नी है
कि खेंचिये पर-ए-ताइर से सूरत-ए-परवाज़
-मिर्ज़ा ग़ालिब
दु`आ क़बूल हो यारब कि `उम्र-ए-ख़िज़्र दराज़
न हो बहरज़: बयाबाँ-नवर्द-ए-वहम-ए-वुजूद
हनोज़ तेरे तसव्वुर में है नशेब-ओ-फ़राज़
विसाल जल्व: तमाशा है, पर दिमाग़ कहाँ
कि दीजे आइन:-ए-इंतज़ार को परदाज़
हर एक ज़र्र:-ए-`आशिक़ है आफ़ताब परस्त
गई न ख़ाक हुए पर, हवा-ए-जल्व:-ए-नाज़
न पूछ वुस`अत-ए-मै-ख़ान:-ए-जुनूँ, ग़ालिब
जहाँ यह कास:-ए-गर्दूं, है एक ख़ाक-अँदाज़
फ़रेब-ए-स`नत-ए-ईजाद: का तमाशा देख
निगाह `अक्स-फ़रोश-ओ-ख़याल आइन:-साज़
ज़ बसकि जल्व:-ए-सैयाद हैरत-आरा है
उड़ी है सफ़हह-ए-ख़ातिर से सूरत-ए-परवाज़
हुजूम-ए-फ़िक़्र से दिल मिस्ल-ए-मौज लरज़ाँ है
कि शीश: नाज़ुक-ओ-सहबा है आब-गीन:-गुदाज़
असद से तर्क-ए-वफ़ा का गुमाँ वह मा`नी है
कि खेंचिये पर-ए-ताइर से सूरत-ए-परवाज़
-मिर्ज़ा ग़ालिब
No comments:
Post a Comment