Thursday, July 18, 2013

071-क्योंकर उस बुत से रख़ूँ

क्योंकर उस बुत से रख़ूँ जान `अज़ीज़
क्या नहीं है मुझे ईमान `अज़ीज़

दिल से निकला, प न निकला दिल से
है तिरे तीर का पैकान `अज़ीज़

ताब लाए-ही बनेगी, ग़ालिब
वाक़ि`अ: सख़्त है और जान `अज़ीज़

-मिर्ज़ा ग़ालिब

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