न गुल-ए-नग़म: हूँ, न पर्द:-ए-साज़
मैं हूँ अपनी शिकस्त की आवाज़
तू, और आराइश-ए-ख़म-ए-काकुल
मैं, और अन्देश: हा-ए-दूर-दराज़
लाफ़-ए-तमकीं, फ़रेब-ए-साद:-दिली
हम हैं, और राज़हा-ए-सीन:-गुदाज़
हूँ गिरफ़्तार-ए-उल्फ़त-ए-सैयाद
वर्न: बाक़ी है ताक़त-ए-परवाज़
वह भी दिन हो, कि उस सितमगर से
नाज़ खेंचूं, बजाय हसरत-ए-नाज़
नहीं दिल में मिरे, वह क़तर:-ए-ख़ूँ
जिस से मिश़गाँ हुई न हो गुलबाज़
अय तिरा ग़मज़: यक-क़लम अँगेज़
अय तिरा ज़ुल्म, सर ब सर अँदाज़
तू हुआ जल्व:-गर, मुबारक हो
रेज़िश-ए-सिजद:-ए-जबीन-ए-नियाज़
मुझ को पूछा, तो कुछ ग़ज़ब न हुआ
मैं ग़रीब और तू ग़रीब-नवाज़
असदुल्लाह खाँ तमाम हुआ
अय दरेग़ा, वह रिन्द-ए-शाहिद-बाज़
-मिर्ज़ा ग़ालिब
मैं हूँ अपनी शिकस्त की आवाज़
तू, और आराइश-ए-ख़म-ए-काकुल
मैं, और अन्देश: हा-ए-दूर-दराज़
लाफ़-ए-तमकीं, फ़रेब-ए-साद:-दिली
हम हैं, और राज़हा-ए-सीन:-गुदाज़
हूँ गिरफ़्तार-ए-उल्फ़त-ए-सैयाद
वर्न: बाक़ी है ताक़त-ए-परवाज़
वह भी दिन हो, कि उस सितमगर से
नाज़ खेंचूं, बजाय हसरत-ए-नाज़
नहीं दिल में मिरे, वह क़तर:-ए-ख़ूँ
जिस से मिश़गाँ हुई न हो गुलबाज़
अय तिरा ग़मज़: यक-क़लम अँगेज़
अय तिरा ज़ुल्म, सर ब सर अँदाज़
तू हुआ जल्व:-गर, मुबारक हो
रेज़िश-ए-सिजद:-ए-जबीन-ए-नियाज़
मुझ को पूछा, तो कुछ ग़ज़ब न हुआ
मैं ग़रीब और तू ग़रीब-नवाज़
असदुल्लाह खाँ तमाम हुआ
अय दरेग़ा, वह रिन्द-ए-शाहिद-बाज़
-मिर्ज़ा ग़ालिब
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