Thursday, July 18, 2013

077-बीम-ए-रक़ीब से नहीं

बीम-ए-रक़ीब से नहीं करते विदा`-ए-होश
मजबूर याँ तलक हुए, अय इख़्तियार हैफ़

जलता है दिल, कि क्यों न हम इक बार जल गए
अय नातमामी-ए-नफ़स-ए-शो’ल:-बार, हैफ़

-मिर्ज़ा ग़ालिब

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