Thursday, July 18, 2013

082-ग़म नहीं होता है आज़ादों को

ग़म नहीं होता है आज़ादों को, बेश अज़ यक नफ़स
बर्क़ से करते हैं रौशन, शम`-ए-मातम-ख़ान: हम

महफ़िलें बरहम करे है, गंजफ़-बाज़-ए-ख़याल
हैं वरक़-गर्दानी-ए-नैरंग-ए-यक बुतख़ान: हम

बा-वुजूद-ए-यक जहाँ, हँगाम: पैदाई नहीं
हैं चिराग़ान-ए-शबिस्तान-ए-दिल-ए-परवान: हम

ज़ो`फ़ से है, ने क़ना`अत से, यह तर्क-ए-जुस्तजू
हैं वबाल-ए-तकय:-गाह-ए-हिम्मत-ए-मर्दान: हम

दाइम उल-हब्स उस में हैं लाखों तमन्नाएं, असद
जानते हैं सीन:-ए-पुरख़ूँ को ज़िन्दाँ-ख़ान: हम

बसकि हैं बद-मस्त-ए-बिशकन-बिशकन-ए-मै-ख़ान: हैं
मू-ए-शीश: को समझते हैं ख़त-ए-पैमान: हम

बसकि हर यक मू-ए-ज़ुल्फ़ अफ़शाँ से है तार-ए-शु`आ
पनजह-ए-ख़ुर्शीद को समझे हैं दस्त-ए-शान: हम

मश्क़-ए-अज़-ख़ुद-रफ़तगी से हैं ब गुलज़ार-ए-ख़याल
आश्ना ता`बीर-ए-ख़्वाब-ए-सब्ज़:-ए-बेगान: हम

फ़रत-ए-बे-वाबी से हैं शबहा-ए-हिज्र-ए-यार में
जूं ज़बान-ए-शम`अ दाग़-ए-गर्मी-ए-अफ़सान: हम

शाम-ए-ग़म में सोज़-ए-`इश्क़-ए-आतिश-ए-रुख़सार से
पर-फ़शान-ए-सोख़तन हैं सूरत-ए-परवान: हम

हसरत-ए-`अर्ज़-ए-तमन्ना याँ से समझा चाहिये
दो-जहाँ हशर-ए-ज़बान-ए-ख़ुश्क हैं जूं शान: हम

किश्ती-ए-`आलम ब तूफ़ान-ए-तग़ाफ़ुल दे कि हैं
`आलम-ए-आब-ए-गुदाज़-ए-जौहर-ए-अफ़सान: हम

वहशत-ए-बेरब्ति-ए-पेच-ओ-ख़म-ए-हस्ती न पूछ
नंग-ए-बालीदन हैं जूं मू-ए-सर-ए-दीवान: हम

-मिर्ज़ा ग़ालिब

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