Thursday, July 18, 2013

084-मुझ को दयार-ए-ग़ैर में

मुझ को दयार-ए-ग़ैर में मारा, वतन से दूर
रख ली मिरे ख़ुदा ने, मिरी बेकसी की शर्म

वह हल्क़:हा-ए-ज़ुल्फ़, कमीं में हैं, या ख़ुदा
रख लीजो मेरे दा`वा-ए-वारस्तगी कि शर्म

-मिर्ज़ा ग़ालिब

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